समुद्री उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एमपीईडीए) की स्थापना वर्ष 1972 के दौरान संसद के एक अधिनियम द्वारा हुई थी। इससे पूर्व सितंबर 1961 में भारत सरकार द्वारा स्थापित समुद्री उत्पाद निर्यात संवर्धन परिषद 24 अगस्त 1972 को एमपीईडीए में मिल गया । एमपीईडीए को देश से निर्यात करने के विशेष संदर्भ के साथ समुद्री उत्पाद उद्योग को बढ़ावा देने के लिए अधिदेश दिया गया है । यह भी परिकल्पित किया गया था कि यह संगठन, “व्यावसायिक रूप से ज्ञात श्रिम्प, झींगा, लोब्स्टर, केकड़ा, मत्स्य, शेल फिश, अन्य जलीय जानवर या पादप या उनके भाग और प्राधिकरण द्वारा भारत के राजपत्र में अधिसूचना द्वारा अधिनियम “के प्रयोजनों के लिए समुद्री उत्पाद होने को घोषित किसी भी अन्य उत्पाद के निर्यात संवर्धन केलिए अपेक्षित संसाधनों को विकसित करने और बढ़ाने के सभी कार्य करेगा । अधिनियम ने देश से चिरस्थाई, गुणवत्तापूर्ण समुद्री खाद्य के निर्यात को सुनिश्चित करने के लिए सभी आवश्यक उपाय करने हेतु भी एमपीईडीए को शक्ति प्रदान की है। एमपीईडीए को भविष्य में देश से समुद्री खाद्य के निर्यात को बढ़ाने एवं इसकी रक्षा केलिए कोई भी मामला निर्धारित करने का प्राधिकार भी दिया गया है । इसे, समुद्री उत्पाद, इसके कच्चे माल के निरीक्षण, मानक और विनिर्देश नियत करने, प्रशिक्षण और साथ ही साथ विदेश में समुद्री खाद्य के विपणन के लिए सभी आवश्यक कदम उठाने की शक्ति प्रदान की गयी है ।
एमपीईडीए एक नोडल एजेंसी है जो पूर्ण निर्यात क्षमता प्राप्त करने के लिए भारत में समुद्री खाद्य उद्योग के समग्र विकास के लिए काम करता है । एमपीईडीए की सिफारिशों के आधार पर भारत सरकार ने मत्स्यन यानों, भंडारण परिसरो, प्रसंस्करण संयंत्रों और वाहनों के लिए नए मानकों को अधिसूचित किया । एमपीईडीए का ध्यान मुख्य रूप से बाज़ार संवर्धन, कैप्चर मात्स्यिकी, कल्चर मात्स्यिकी, मूल्य संवर्धन एवं प्रसंस्करण अवसंरचना, गुणवत्ता नियंत्रण, अनुसंधान और विकास में केन्द्रित है ।
एमपीईडीए के प्रमुख कार्यकलाप
- समुद्री खाद्य निर्यात व्यापार के लिए अवसंरचनात्मक सुविधाओं का पंजीकरण।
- व्यापार के बारे में जानकारी का संग्रह और इसका प्रसार।
- विदेशी बाजारों में भारतीय समुद्री उत्पादों को बढ़ावा देना।
- गुणवत्ता के बाद बेहतर संरक्षण और आधुनिक प्रसंस्करण के लिए अवसंरचना के विकास हेतु सहायता देने के द्वारा उद्योग के लिए महत्वपूर्ण योजनाओं का कार्यान्वयन ।
- हैचरी विकास, नए फार्म विकास, प्रजातियों के विविधीकरण और प्रौद्योगिकी के उन्नयन के माध्यम से निर्यात उत्पादन बढ़ाने के लिए जलकृषि का संवर्धन ।
- मत्स्यन क्षमता में वृद्धि करने के लिए, परीक्षण मत्स्यन, संयुक्त उद्यम, उपकरणों के संस्थापन एवं उन्नयन के माध्यम से गंभीर सागर मत्स्यन परियोजनाओं को बढ़ावा देना ।
- बाजार संवर्धनात्मक कार्यकलाप और प्रचार।
- समुद्री उत्पाद, इसके कच्चे माल के निरीक्षण, मानक और विनिर्देश नियत करने, प्रशिक्षण, विदेश में विपणन किए जाने वाले समुद्री खाद्य की गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाने के साथ-साथ विदेशी बाज़ारों में विपणन किए जाने वाले समुद्री खाद्य की गुणवत्ता को बनाए रखने हेतु सभी आवश्यक कदम उठाना ।
- मत्स्यन बन्दरगाहों के आधुनिकीकरण को बढ़ावा देने केलिए मात्स्यिकी से जुड़े संबंधित क्षेत्रों में मछुआरों, मत्स्य प्रसंस्करण कार्यकर्ताओं, जलकृषि कृषकों और अन्य पणधारियों को प्रशिक्षण देना।
- राजीव गांधी जलकृषि केंद्र (आरजीसीए) के माध्यम से निर्यात क्षमता वाली जलीय प्रजातियों के जलकृषि के लिए विकास और अनुसंधान का आयोजन ।
- राष्ट्रीय चिरस्थाई जलकृषि केंद्र (नाक्सा) एवं मत्स्य गुणवत्ता प्रबंधन और चिरस्थाई मत्स्यन केलिए नेटवर्क (नेटफिश) के माध्यम से विस्तारण और जागरूकता कार्यकलाप , प्रशिक्षण आदि का आयोजन ।
- भविष्य में, देश से किए जाने वाले समुद्री खाद्य के निर्यात की रक्षा करने और इसे बढ़ाने के लिए आवश्यक किसी भी मामले को स्वयं के लिए निर्धारित करना ।